न्यूज़ डेस्क: 2019 के लोकसभा चुनाव का सांतवा चरण राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए काफी चुनौती भरा होने जा रहा है. लोकसभा की तीन सीटों पर राजग को न केवल अपनी सीटिंग सीट बचाने की चुनौती है बल्कि तीन सीटिंग सांसदों को भी परास्त करने हेतु मजबूत रणनीति बनाने की जरूरत है. भारतीय जनता पार्टी के अलावा जनता दल यूनाइटेड को भी इसी रणनीति की जरूरत है.
सभी आठ सीटों पर था एनडीए का कब्जा
सातवें चरण में लोकसभा की जिन आठ सीटों पर मतदान 19 मई को होना है उन पर वर्ष 2014 के चुनाव में राजग की ही जीत हुई थी. पटना साहिब, पाटलिपुत्र, बक्सर, आरा व सासाराम में भाजपा ने परचम लहराया था जबकि जहानावाद व काराकाट से रालोसपा व नालंदा से जदयू ने जीत दर्ज की थी. 2019 में स्थिति पूरी तरह बदल गई है. पटना साहिब के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने महागठबंधन का दामन थामा और कांग्रेस में शामिल हुए उधर रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा राजग से नाता तोड़ महागठबंधन में एक नये दल के रूप में शामिल हो गये. कुशवाहा के साथ जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार नहीं गये. नतीजतन वर्ष 2014 में राजग के तीन सांसद यानी पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा, काराकाट से उपेन्द्र कुशवाहा तथा जहानाबाद से अरुण कुमार अपने ही पुराने गठबंधन को चुनौती दे रहे हैं. 2014 में पटना साहिब पर भाजपा का कब्जा रहा था. भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा ने कांग्रेस के कुणाल सिंह को परास्त किया था. 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा को 4,85,905 जबकि कांग्रेस को 2,20,100 मत मिले थे. इस बार शत्रुघ्न सिन्हा महागठबंधन से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उनका सामना केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से है. महागठबंधन का उम्मीदवार होने से जहां शत्रुघ्न सिन्हा का भरोसा राजद के माई समीकरण के साथ कुशवाहा, मांझी और दलितों के एक खास वर्ग पर है तो रविशंकर प्रसाद को भाजपा के कैडर वोटों के साथ-साथ सवर्ण, वैश्य व पासवान मतों के साथ अति पिछड़ा व कुर्मी मतों का सहारा है. पटना साहिब भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी हुई है.
तीन सीटों पर पिछली बार के अपनों से मिल रही चुनौती
पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र 2009 में अस्तित्व में आया था. जबसे इस लोकसभा क्षेत्र का गठन हुआ है तब से यह भाजपा के कब्जे में है और यहां से बतौर भाजपा उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा जीतते रहे हैं. रविशंकर प्रसाद की चुनौती यह है कि उनका मुकाबला स्थापना काल से जुड़े रहे उस शत्रुघ्न सिन्हा से है, जो लगातार दो बार इस क्षेत्र से विजयी रहे हैं. भाजपा को भरोसा है कि इस चुनाव में उसे जदयू का साथ मिल रहा है. काराकाट लोकसभा क्षेत्र से राजग की दूसरी बड़ी चुनौती जीत को बरकरार रखने की है. 2019 में राजग की ओर से जदयू के उम्मीदवार महाबली सिंह की चुनौती रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा से है. 2014 में कुशवाहा ने यहां से राजद की उम्मीदवार कांति सिंह को पराजित किया था. 2014 में उपेंद्र कुशवाहा को 3,38,892 मत तो राजद के कांति सिंह को 2,36,651 मत मिले थे. 2019 में राजनीतिक स्थिति बदली हुई है. रालोसपा ने महागठबंधन का दामन थाम लिया. रालोसपा के शामिल होते ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने काराकाट से अपनी दावेदारी वापस लेते हुए यह सीट रालोसपा के पाले में डाल दी. राजग ने भी रणनीतिक बदलाव करते यहां से जनता दल यू को चुनावी जंग में उतारा. जनता दल यू ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर चुके महाबली सिंह को चुनाव में उतारा है. राजग की चुनौती इस बार के चुनाव में जीत बनाये रखने की है. जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र भी इस बार राजग के लिए जीत बरकरार रखने की चुनौती है. वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में राजग ने यह सीट जदयू के हवाले की है. जदयू ने यहां से चंद्रेश्वर चंद्रवंशी को चुनावी रण में उतारा है. इनका सामना राजद के उम्मीदवार सुरेन्द्र यादव से हैं. गत चुनाव में जहानाबाद लोकसभा से रालोसपा के अरुण कुमार को विजय मिली थी. तब राजग के उम्मीदवार के तौर पर अरुण कुमार ने राजद के उम्मीदवार सुरेन्द्र यादव को परास्त किया था. इस बार अरुण कुमार राष्ट्रीय समता पार्टी (एस) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने के प्रयास में हैं. जहानाबाद से जनता दल यू के चंदेश्वर चंद्रवंशी के लिए सकारात्मक बात यह है कि आज उनके साथ भाजपा व लोजपा खड़ी है.